कल्पना कीजिए कि आप समय में 2 अरब साल पीछे यात्रा करते हैं। उस समय पृथ्वी एक अलग दुनिया थी—ऑक्सीजन लगभग न के बराबर थी, महाद्वीप अभी बन ही रहे थे, और जीवन का मतलब केवल सूक्ष्मजीव (microbes) थे। अब कल्पना कीजिए कि आप उस प्राचीन दुनिया के एक हिस्से को, उसके मूल स्वरूप में, आज चख सकते हैं।
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यह विज्ञान-कथा (science-fiction) नहीं है। यह टोरंटो विश्वविद्यालय (University of Toronto) की जियोकेमिस्ट (Geochemist) डॉ. बारबरा शेरवुड लोलार (Dr. Barbara Sherwood Lollar) और उनकी टीम के लिए एक हकीकत है।
उन्होंने कनाडा की एक खदान में 2.4 से 3.1 किलोमीटर की गहराई में फँसे पानी की खोज की है, जो अरबों वर्षों से बाहरी दुनिया से कटा हुआ था। यह कहानी सिर्फ 'पुराने पानी' की नहीं है। यह कहानी जीवन की परिभाषा को फिर से लिखने की है। यह कहानी है पृथ्वी के अंधेरे, गहरे गर्त से लेकर मंगल (Mars) के लाल बंजर रेगिस्तान और यूरोपा (Europa) के बर्फीले महासागरों तक की।
यह एक संपूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण है कि यह खोज क्यों मायने रखती है, इसके पीछे का विज्ञान क्या है, और यह ब्रह्मांड में जीवन की खोज के लिए क्या सीमाएँ (limitations) तय करती है।
ग्राउंड ज़ीरो: किड क्रीक माइन (The Kidd Creek Mine)
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खनिक (miners) हर दिन इतनी गहराई में जाते हैं जहाँ वे 2.7 अरब साल पुरानी ज्वालामुखीय चट्टानों (volcanic rocks) के बीच काम करते हैं। डॉ. शेरवुड लोलार और उनकी टीम दशकों से ऐसी गहरी खदानों में यह समझने के लिए जा रही थी कि क्या चट्टानों के फ्रैक्चर (fractures) में प्राचीन पानी फँसा हो सकता है।
2013 में, 2.4 किलोमीटर की गहराई पर ड्रिलिंग के दौरान, चट्टान के एक फ्रैक्चर से पानी का एक सोता (gush) फूट पड़ा। यह कोई 'रिसाव' (leak) नहीं था; यह एक 'भंडार' (reservoir) था जो अरबों वर्षों से वहीं फँसा हुआ था।
सवाल-जवाब (FAQ): क्या इस पानी को 'चखा' गया था?
अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि क्या वैज्ञानिकों ने इसे 'पिया' था। इसका जवाब हाँ और नहीं में है।
प्रश्न: क्या यह 2 अरब साल पुराना पानी 'पीने लायक' था?
उत्तर: बिलकुल नहीं। यह पीने के लिए ज़हरीला और खतरनाक था। डॉ. शेरवुड लोलार ने अपनी रिपोर्टों में इसका वर्णन किया है। जब उन्होंने पानी को चखने (taste-test) के लिए अपनी उंगली पर थोड़ा सा लगाया, तो उन्होंने पाया कि यह "अत्यधिक खारा" (hyper-saline) था—समुद्र के पानी से 8 से 10 गुना ज़्यादा। यह स्वाद इसकी रासायनिक संरचना (chemical composition) के कारण था। यह पानी अरबों वर्षों से चट्टानों के संपर्क में था, जिससे इसमें कैल्शियम (Calcium), सोडियम (Sodium) और सल्फेट (Sulfate) जैसे खनिज भारी मात्रा में घुल गए थे, जो इसे लगभग एक 'सिरप' (syrup) जैसा गाढ़ापन देते थे। इसकी गंध भी बहुत तेज़, गंधक (sulphur) जैसी थी।
आयु का निर्धारण: नोबल गैस डेटिंग का विज्ञान
सबसे बड़ा सवाल यह था: यह पानी कितना 'पुराना' था?
कार्बन-डेटिंग यहाँ काम नहीं कर सकती, क्योंकि वह केवल कुछ हज़ार साल पुराने 'जैविक' (organic) पदार्थों के लिए होती है। इस पानी की उम्र जानने के लिए, टीम ने एक ज़्यादा परिष्कृत (sophisticated) तरीके का इस्तेमाल किया: नोबल गैस डेटिंग (Noble Gas Dating)।
नोबल गैस डेटिंग क्या है?
सरल शब्दों में: इसे एक 'परमाणु घड़ी' (atomic clock) समझें।
- चट्टानें और रेडिएशन: किड क्रीक माइन जैसी प्राचीन चट्टानों में यूरेनियम (Uranium) और थोरियम (Thorium) जैसे प्राकृतिक रेडियोधर्मी तत्व होते हैं।
- क्षय (Decay): ये तत्व बहुत धीमी, स्थिर दर (fixed rate) से 'क्षय' होते हैं।
- गैसें बनना: जब वे क्षय होते हैं, तो वे हीलियम (Helium), नियॉन (Neon), आर्गन (Argon) और ज़ेनॉन (Xenon) जैसी 'नोबल गैसें' (Noble Gases) पैदा करते हैं।
- फँस जाना: चूँकि यह पानी चट्टान में अरबों सालों से 'बंद' (isolated) था, ये गैसें पानी में घुलती गईं और वहीं फँस गईं। वे 'नोबल' हैं, इसलिए वे किसी और चीज़ से प्रतिक्रिया (react) नहीं करतीं।
- गणना: पानी में इन गैसों की मात्रा को मापकर, वैज्ञानिक ठीक-ठीक गणना कर सकते हैं कि यह पानी बाहरी दुनिया से कितने समय से कटा हुआ है।
2013 और 2016 के ऐतिहासिक निष्कर्ष
2013 (Nature Geoscience): डॉ. शेरवुड लोलार और उनकी टीम ने 2013 में Nature Geoscience जर्नल में अपना पहला पेपर प्रकाशित किया। 2.4 किमी की गहराई पर मिले पानी के विश्लेषण से पता चला कि यह कम से कम 1.6 अरब (1.6 Billion) साल पुराना था। इसने उस समय 'सबसे पुराने पानी' के पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।
2016 (AGU मीटिंग): टीम ने खदान में और भी गहराई (लगभग 3.1 किमी) पर ड्रिलिंग जारी रखी। दिसंबर 2016 में अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन (AGU) की बैठक में, उन्होंने घोषणा की कि उन्हें और भी पुराना पानी मिला है। नया अनुमान इस पानी की उम्र कम से कम 2 अरब (2 Billion) साल बताता है।
यह पृथ्वी का अब तक का खोजा गया सबसे पुराना 'मुक्त बहने वाला' (free-flowing) पानी था।
असली चमत्कार: यह पानी 'ज़िंदा' है (बिना सूरज के)
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यह खोज सिर्फ भूविज्ञान (geology) के लिए नहीं थी। असली धमाका तब हुआ जब उन्होंने पानी की 'केमिस्ट्री' (chemistry) को देखा।
हम स्कूल में पढ़ते हैं कि पृथ्वी पर जीवन 'सूर्य' (Sun) पर निर्भर करता है। सूर्य 'प्रकाश संश्लेषण' (Photosynthesis) को शक्ति देता है, जो हमारे खाद्य पिरामिड (food pyramid) का आधार है।
यह पानी उस नियम को तोड़ता है।
2 अरब साल से इस पानी ने सूरज की एक किरण नहीं देखी है। तो फिर यहाँ जीवन कैसे हो सकता है? जवाब दो प्रक्रियाओं में छिपा है:
रेडियोलिसिस (Radiolysis)
यह क्या है? यह 'रेडिएशन द्वारा पानी का टूटना' है।
कैसे? वही यूरेनियम और थोरियम, जो पानी की 'उम्र' बताने वाली नोबल गैसें छोड़ रहे थे, वे एक और काम कर रहे थे। उनका रेडिएशन पानी (H₂O) के अणुओं को तोड़ रहा था।
परिणाम: इस प्रक्रिया ने भारी मात्रा में हाइड्रोजन (H₂) गैस पैदा की। यह हाइड्रोजन गैस, उन बैक्टीरिया (bacteria) के लिए 'भोजन' (food) है।
केमोसिंथेसिस (Chemosynthesis)
यह क्या है? यह 'रसायन द्वारा भोजन बनाना' है (प्रकाश द्वारा नहीं)। इसे 'बिना सूरज की खेती' समझें।
भारतीय संदर्भ: आपने कभी-कभी गहरे बोरवेल (borewell) या बंद कुएँ के पानी में जो 'गंधक' (sulphur) या 'सड़े अंडे जैसी' गंध महसूस की है? वह अक्सर इसी प्रक्रिया का नतीजा होती है। इसका मतलब है कि गहराई में मौजूद बैक्टीरिया (जो सूर्य को नहीं देख सकते) चट्टानों में घुले खनिजों (जैसे सल्फेट) को 'खा रहे होते' हैं।
परिणाम: किड क्रीक माइन के पानी में 'सल्फेट-कम करने वाले' (sulfate-reducing) बैक्टीरिया मिले, जो सूर्य के प्रकाश के बजाय, 'रेडियोलिसिस' से बनी हाइड्रोजन (H₂) को 'खाते' हैं और सल्फेट को 'साँस' में लेते हैं।
यह एक पूरी तरह से आत्मनिर्भर, अरबों साल पुराना इकोसिस्टम था, जो पृथ्वी की सतह के नीचे 3 किमी गहराई में, पूरी दुनिया से कटा हुआ, 'रेडिएशन' पर जी रहा था।
'बड़ा सवाल': अगर यहाँ... तो मंगल पर क्यों नहीं?
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और यहीं पर यह कनाडाई खदान की कहानी एक 'ग्लोबल' (global) नहीं, बल्कि एक 'इंटरप्लेनेटरी' (interplanetary) कहानी बन जाती है। डॉ. शेरवुड लोलार सिर्फ जियोकेमिस्ट नहीं हैं; वह एक एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट (Astrobiologist) हैं। वे पृथ्वी पर जीवन का अध्ययन यह समझने के लिए करती हैं कि यह ब्रह्मांड में और कहाँ हो सकता है।
मंगल का कनेक्शन: एक आशावादी परिकल्पना
किड क्रीक माइन की खोज यह 'सबूत' (proof-of-concept) है कि जीवन को सूर्य की आवश्यकता नहीं है। जीवन को सिर्फ तीन चीज़ों की ज़रूरत है:
- चट्टान (Rock)
- पानी (Water)
- ऊर्जा स्रोत (Energy Source) (जैसे रेडिएशन से पैदा हुई हाइड्रोजन)
आज, मंगल (Mars) एक ठंडा, सूखा, विकिरण (radiation) से भरा रेगिस्तान है। लेकिन हम जानते हैं कि अरबों साल पहले, मंगल 'गीला' था। हम यह भी जानते हैं कि मंगल की चट्टानें (पृथ्वी की तरह) रेडियोधर्मी तत्वों से भरी हैं।
परिकल्पना (Hypothesis): क्या यह संभव है कि मंगल की सतह के नीचे आज भी 'तरल' (liquid) पानी फँसा हुआ हो, और वहाँ की चट्टानें 'रेडियोलिसिस' के माध्यम से हाइड्रोजन (भोजन) पैदा कर रही हों? और क्या वहाँ ठीक किड क्रीक माइन जैसे बैक्टीरिया जीवित हों?
जवाब है: सैद्धांतिक रूप से हाँ।
वैज्ञानिक सीमाएँ: मंगल पर जीवन की कठोर सच्चाई
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यहीं पर हमें उत्साह (hype) को वैज्ञानिक सटीकता (scientific accuracy) से संतुलित करने की आवश्यकता है। किड क्रीक माइन एक 'मॉडल' (model) प्रदान करता है, 'सबूत' (proof) नहीं।
समस्या 1: मंगल का पानी कहाँ है? (और क्या वहाँ जीवन है?)
हाल के (2024-2025) अध्ययनों से पता चलता है कि मंगल पर अभी भी भारी मात्रा में तरल पानी हो सकता है। NASA के 'इनसाइट' (InSight) लैंडर (जिसने 2018-2022 तक काम किया) के भूकंपीय (seismic) आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि मंगल की पपड़ी (crust) के नीचे एक विशाल जल भंडार हो सकता है।
सीमा: यह पानी सतह पर नहीं है। यह 10 से 20 किलोमीटर की गहराई में होने का अनुमान है। और सबसे महत्वपूर्ण: यह सिर्फ 'पानी' का अप्रत्यक्ष प्रमाण है, 'जीवन' का नहीं। अभी तक मंगल पर जीवन का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है।
वैज्ञानिक चुनौती: हम मंगल के इस पानी तक क्यों नहीं पहुँच सकते?
मंगल पर जीवन खोजना पृथ्वी की तुलना में बहुत ज़्यादा कठिन है।
- असंभव गहराई: अनुमानित पानी 10-20 किमी नीचे है। तुलना के लिए, पृथ्वी पर इंसान द्वारा खोदा गया सबसे गहरा गड्ढा (कोला सुपरडीप बोरहोल) केवल 12.2 किमी है, और उसे खोदने में दशकों लगे थे।
- तकनीकी सीमा: हमारे पास ऐसी कोई रोबोटिक ड्रिलिंग तकनीक नहीं है जो मंगल के कठोर वातावरण में, बिना इंसानी मदद के, इतनी गहराई तक ड्रिल कर सके।
- निष्कर्ष: हम अभी उस पानी तक नहीं पहुँच सकते। इसलिए, यह एक 'आशा' है, 'तथ्य' नहीं।
तुलनात्मक तालिका: पृथ्वी बनाम मंगल के गहरे जल भंडार
यह इन्फोग्राफिक टेबल पृथ्वी पर मिले वास्तविक पानी और मंगल पर 'अनुमानित' पानी के बीच के विशाल अंतर को स्पष्ट करती है।
| विशेषता (Feature) | पृथ्वी का गहरा पानी (किड क्रीक माइन) | मंगल का गहरा पानी (अनुमानित) |
|---|---|---|
| गहराई (Depth) | 2.4 - 3.1 किलोमीटर | 10 - 20 किलोमीटर (अनुमानित) |
| उम्र (Age) | 1.6 - 2.0+ अरब साल | अज्ञात (संभवतः अरबों साल) |
| प्रमाण (Evidence) | प्रत्यक्ष (Direct Sample) | अप्रत्यक्ष (Indirect - Seismic Data) |
| जीवन (Life) | हाँ (जीवित बैक्टीरिया मिले) | अज्ञात (केवल 'संभावना' है) |
| पहुँच (Access) | मुश्किल, पर संभव (खदान) | असंभव (वर्तमान तकनीक से) |
'रहने योग्य क्षेत्र' (Habitable Zone) की नई परिभाषा
किड क्रीक माइन की इस खोज का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि इसने 'रहने योग्य क्षेत्र' की हमारी परिभाषा को बदल दिया है।
पहले हम मानते थे कि जीवन केवल किसी ग्रह की 'सतह' पर हो सकता है, जहाँ वह अपने तारे से सही दूरी पर हो (ताकि तरल पानी मौजूद हो सके)।
लेकिन इस खोज ने "डीप बायोस्फीयर" (Deep Biosphere) के विचार को साबित कर दिया है। जीवन ग्रहों के अंदर भी हो सकता है। इसका मतलब है कि बृहस्पति (Jupiter) का चंद्रमा यूरोपा (Europa) और शनि (Saturn) का चंद्रमा एनसेलेडस (Enceladus)—जो बर्फ की मोटी परतों से ढके हैं, लेकिन जिनके नीचे विशाल तरल महासागर हैं—जीवन के लिए प्रमुख उम्मीदवार बन गए हैं।
यह 2 अरब साल पुराना पानी सिर्फ एक 'टाइम कैप्सूल' नहीं है; यह एक 'संदेश' (message) है। यह पृथ्वी के गहरे अतीत से एक संदेश है जो हमें बताता है कि जीवन कितना 'जिद्दी' (resilient) है। और यह हमें बताता है कि जब हम ब्रह्मांड में 'जीवन' की तलाश करते हैं, तो शायद हमें 'ऊपर' तारों की ओर नहीं, बल्कि 'नीचे' अपने पैरों तले देखना चाहिए।





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