शोधकर्ताओं ने पहली बार 20 लाख साल पुराने मानव पूर्वज, पैरांथ्रोपस रोबस्टस, के दांतों से प्राचीन प्रोटीन को सफलतापूर्वक निकाला है। अफ्रीका के गर्म वातावरण में, जहाँ DNA संरक्षित नहीं रहता, यह खोज एक अभूतपूर्व सफलता है। इस विश्लेषण ने न केवल चार जीवाश्मों के जैविक लिंग (biological sex) की सटीक पहचान की, बल्कि अप्रत्याशित आनुवंशिक विविधता (genetic diversity) का भी खुलासा किया, जो यह बताता है कि यह प्रजाति पहले सोचे गए से कहीं अधिक जटिल थी।
वैज्ञानिकों ने मानव विकास (Human Evolution) के इतिहास की एक ऐसी गुत्थी को सुलझाया है जिसे अब तक "असंभव" माना जाता था। दक्षिण अफ्रीका के "मानवता के पालने" (Cradle of Humankind) कहे जाने वाले प्रसिद्ध 'स्वार्टक्रैन्स गुफा' (Swartkrans Cave) में मिले 20 लाख साल पुराने दांतों के एक सेट ने हमारे एक विलुप्त पूर्वज के जेनेटिक (genetic) रहस्यों को उजागर कर दिया है।
यह खोज सिर्फ़ इसलिए बड़ी नहीं है कि यह 20 लाख साल पुरानी है, बल्कि इसलिए बड़ी है क्योंकि वैज्ञानिकों ने यह कारनामा बिना DNA के कर दिखाया है। यह एक ऐसी फोरेंसिक सफलता है जो हमारे पूर्वजों के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह बदल सकती है।
क्या यह नर-मादा का फ़र्क था, या एक नई प्रजाति?
यह सब एक 100 साल पुरानी पहेली से शुरू होता है। वैज्ञानिकों के पास हमारे एक विलुप्त रिश्तेदार, पैरांथ्रोपस रोबस्टस (Paranthropus robustus), के सैकड़ों जीवाश्म थे। यह हमारा सीधा पूर्वज नहीं था, बल्कि हमारी 'साइड ब्रांच' (side branch) था। यह मानव जैसा दिखने वाला जीव था जो 20 लाख साल पहले अफ्रीका में हमारे पूर्वजों (प्रारंभिक होमो) के साथ घूमता था। पैरांथ्रोपस अपने मज़बूत जबड़ों, बड़े चेहरे और सख़्त चीज़ें चबाने वाले विशाल दांतों के लिए जाना जाता था।
लेकिन इन जीवाश्मों ने वैज्ञानिकों को एक पहेली में उलझा दिया था। कुछ जीवाश्म बहुत बड़े और 'मज़बूत' (robust) थे, जबकि कुछ बहुत 'छोटे' और 'हल्के' (gracile) थे। वैज्ञानिक दशकों से बहस कर रहे थे कि यह अंतर क्यों था: क्या यह सिर्फ़ 'सेक्सुअल डायमोर्फिज़्म' (sexual dimorphism) था (यानी, बड़े नर और छोटी मादा)? या क्या ये छोटे जीवाश्म एक अलग प्रजाति, जैसे ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ़्रीकैनस (Australopithecus africanus), के थे? या क्या *पैरांथ्रोपस* एक ही प्रजाति थी जिसमें बहुत ज़्यादा 'विविधता' (variation) थी? इस पहेली को सुलझाने का एक ही तरीका था: जेनेटिक्स।
"इम्पॉसिबल" हुक: DNA क्यों नहीं?
यहीं पर विज्ञान एक 'दीवार' (wall) से टकरा गया। जेनेटिक जानकारी का असली खज़ाना DNA में होता है, लेकिन DNA एक बहुत ही 'नाज़ुक' (fragile) अणु (molecule) है। वैज्ञानिकों के अनुसार, अफ्रीका जैसे गर्म और नम वातावरण में, DNA कुछ हज़ार सालों में ही पूरी तरह नष्ट (degrade) हो जाता है। इसलिए, 1.8 से 2.2 मिलियन (20 लाख) साल पुराने जीवाश्म से DNA मिलना विज्ञान की नज़र में असंभव था। यह गुत्थी, हमेशा के लिए अनसुलझी... ऐसा हम मानते थे।
नई खोज: 'पैलियोप्रोटिओमिक्स' (Paleoproteomics)
इस क्रांतिकारी खोज का नेतृत्व यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगन और यूनिवर्सिटी ऑफ़ केप टाउन के शोधकर्ताओं ने किया, और यह प्रतिष्ठित (Science) जर्नल में प्रकाशित हुई है। उन्होंने DNA को छोड़ दिया और अपना ध्यान प्राचीन प्रोटीन (Ancient Proteins) पर केंद्रित किया।
प्रोटीन, DNA की तुलना में कहीं ज़्यादा 'मज़बूत' (robust) होते हैं। और यह प्रोटीन छिपा हुआ था दांत के इनेमल (Tooth Enamel) में। इनेमल हमारे शरीर का सबसे सख़्त हिस्सा होता है। यह एक 'सुरक्षित तिजोरी' या 'टाइम कैप्सूल' की तरह काम करता है, जो प्रोटीन को लाखों सालों तक गर्मी और क्षय (decay) से बचाता है, क्योंकि प्रोटीन इनेमल के खनिजों (minerals) से 'चिपक' (bond) जाते हैं।
इस नई तकनीक को 'पैलियोप्रोटिओमिक्स' (Paleoproteomics - प्राचीन प्रोटीन का अध्ययन) कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने 'मास स्पेक्ट्रोमेट्री' (mass spectrometry) जैसी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके चार पैरांथ्रोपस जीवाश्मों के दांतों से इन प्रोटीनों को निकाला और उनके 'अनुक्रम' (sequence) को पढ़ा।
20 लाख साल पुराने दांतों ने क्या 'रहस्य' खोले?
इन प्रोटीनों ने 100 साल पुरानी पहेली को सुलझाना शुरू कर दिया।
लिंग भेद का 'झूठ' बेनकाब हुआ
सबसे पहले, वैज्ञानिकों ने उस पुरानी थ्योरी (लिंग भेद) का परीक्षण किया। टीम ने एमेलोजेनिन (amelogenin) नामक एक प्रोटीन का विश्लेषण किया, जो लिंग-निर्धारण करने वाले जीनों (sex chromosomes) से जुड़ा होता है। इस विश्लेषण ने स्पष्ट रूप से चार में से दो जीवाश्मों को 'नर' (Male) और दो को 'मादा' (Female) के रूप में पहचाना।
चौंकाने वाला नतीजा यह था कि एक जीवाश्म (SK 835), जिसे उसके छोटे आकार के कारण पारंपरिक रूप से 'मादा' माना जाता था, प्रोटीन विश्लेषण में स्पष्ट रूप से 'नर' निकला। यह साबित करता है कि सिर्फ़ आकार के आधार पर लिंग का पता लगाने का पुराना तरीका 'ग़लत' था।
"एक नहीं, कई थे" (जेनेटिक विविधता)
तो अगर यह सिर्फ़ लिंग भेद नहीं था, तो क्या था? वैज्ञानिकों ने एक और प्रोटीन, इनेमेलिन (enamelin), की जाँच की। यहाँ उन्हें असली 'खज़ाना' मिला। उन्हें इस प्रोटीन में 'विभिन्नता' (variation) मिली। उन्होंने देखा कि कुछ पैरांथ्रोपस में यह प्रोटीन आधुनिक इंसानों, चिंपैंजी और गोरिल्ला जैसा था। लेकिन, कुछ में यह बिलकुल अलग, एक 'यूनिक' वर्ज़न था जो सिर्फ़ *पैरांथ्रोपस* में ही पाया गया।
सबसे बड़ा सबूत यह था कि एक जीवाश्म में वैज्ञानिकों को ये दोनों वर्ज़न एक साथ मिले! विज्ञान की भाषा में इसे 'हेटेरोज़ाइगोसिटी' (heterozygosity) कहते हैं। यह 20 लाख साल पुराने जीवाश्म में 'वास्तविक जेनेटिक विविधता' (real genetic diversity) का पहला पक्का सबूत है।
यह खोज क्यों मायने रखती है?
यह खोज सिर्फ़ एक प्रजाति के बारे में नहीं है। यह हमारे इतिहास को पढ़ने का एक नया तरीका है। यह उस 100 साल पुरानी पहेली का जवाब देती है: पैरांथ्रोपस रोबस्टस शायद एक 'एकल' (single uniform) प्रजाति नहीं थी, जैसा हम सोचते थे।
यह 'प्रोटीन सबूत' दिखाता है कि वे सिर्फ़ नर-मादा नहीं थे; उनमें वास्तविक जेनेटिक विविधता थी। 'ScienceDaily' के अनुसार, यह बताता है कि वे अलग-अलग आबादी (populations) या उप-प्रजातियों (sub-groups) का एक 'जटिल मिश्रण' (complex mix) थे, जो अफ़्रीका में एक साथ रहते थे और शायद उनकी 'वंशावली' (ancestries) भी अलग-अलग थी।
यह नई 'पैलियोप्रोटिओमिक्स' तकनीक एक क्रांति है। यह वैज्ञानिकों को एक "नया मॉडल" (new model) देती है, जहाँ वे 'आणविक' (molecular - प्रोटीन) डेटा को 'आकारिकी' (morphological - हड्डी का आकार) डेटा के साथ "मर्ज" (merge) कर सकते हैं। अब हम DNA के बिना भी, लाखों साल पुराने जीवाश्मों के जेनेटिक रहस्यों को पढ़ सकते हैं, जो पहले असंभव था।

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