AI का बड़ा कमाल: वैज्ञानिकों ने 'पेरोव्स्काइट' सोलर पैनल की स्थिरता का राज़ खोला

विज्ञान की दुनिया में एक बड़ी सफलता मिली है, जहाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से शोधकर्ताओं ने सौर ऊर्जा (Solar Energy) की एक क्रांतिकारी तकनीक के रास्ते में आ रही सबसे बड़ी बाधा को सुलझा लिया है। स्वीडन की चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी (Chalmers University of Technology) के वैज्ञानिकों ने AI का उपयोग यह समझने के लिए किया है कि 'हैलाइड पेरोव्स्काइट' नामक एक अद्भुत मटीरियल काम कैसे करता है। 


यह खोज भविष्य के सोलर पैनलों को सस्ता, हल्का और ज़्यादा लचीला बनाने का रास्ता खोल सकती है।

'पेरोव्स्काइट' का वादा: क्या है यह जादुई मटीरियल?


हैलाइड पेरोव्स्काइट (Halide Perovskite) को सौर ऊर्जा का भविष्य कहा जा रहा है। पारंपरिक सिलिकॉन पैनलों के विपरीत, यह मटीरियल बेहद हल्का, सस्ता और लचीला (flexible) है। इसकी इन्हीं खूबियों के कारण इसे छोटे सेलफोन से लेकर विशाल इमारतों तक, कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

अमेरिकी ऊर्जा विभाग (U.S. Department of Energy) ने भी कहा है कि जब पेरोव्स्काइट मटीरियल को सिलिकॉन एब्जॉर्बर के साथ मिलाया जाता है, तो वे प्रकाश को बिजली में बदलने में और भी ज़्यादा कुशल (efficient) हो सकते हैं।

सबसे बड़ी चुनौती: अस्थिरता (The Stability Problem)

इतनी खूबियों के बावजूद, पेरोव्स्काइट तकनीक के सामने एक बड़ी चुनौती थी: यह मटीरियल बहुत जल्दी खराब (degrade) हो जाता है, यानी यह स्थिर (stable) नहीं है। वैज्ञानिकों को यह समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों होता है।

यहीं पर AI ने अपनी भूमिका निभाई। चाल्मर्स यूनिवर्सिटी की टीम ने मशीन लर्निंग और कंप्यूटर-आधारित सिमुलेशन (simulations) का उपयोग किया। इस AI मॉडल ने उन्हें वास्तविक जीवन की परिस्थितियों की नकल करते हुए, लंबे समय तक मटीरियल का अध्ययन करने में मदद की।

AI ने खोला 'Missing Piece': क्या पता चला?

AI सिमुलेशन से पता चला कि जैसे ही यह मटीरियल ठंडा होता है, इसके अणु (molecules) एक 'अर्ध-स्थिर' (semi-stable) अवस्था में फँस जाते हैं। यही फँसी हुई अवस्था मटीरियल की स्थिरता को प्रभावित करती है और उसे जल्दी खराब कर देती है।

शोधकर्ता संगीता दत्ता (Sangita Dutta) के अनुसार, "[यह] लंबे समय से रिसर्च पहेली का एक 'लापता टुकड़ा' (missing piece) था। और हमने अब इस चरण की संरचना के बारे में एक बुनियादी सवाल का जवाब दे दिया है।"
टीम ने अपने सिमुलेशन की सटीकता की पुष्टि करने के लिए बर्मिंघम विश्वविद्यालय (University of Birmingham) के वैज्ञानिकों से भी परामर्श किया।

भविष्य के लिए एक नई उम्मीद

यह सफलता न केवल पेरोव्स्काइट मटीरियल को स्थिर बनाने में मदद करेगी, बल्कि यह भविष्य में अन्य वैज्ञानिकों को भी इसी तरह के AI मॉडल का उपयोग करने के लिए प्रेरित करेगी। जहाँ कुछ कंपनियाँ सोलर सेल में लेड (lead) की जगह टिन (tin) का उपयोग करने पर काम कर रही हैं, वहीं अन्य क्वांटम मटीरियल का अध्ययन कर रही हैं। यह नई AI-आधारित खोज इन सभी प्रयासों को तेज़ी दे सकती है, जिससे स्वच्छ और सस्ती सौर ऊर्जा का भविष्य और भी करीब आ गया है।

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